Tuesday, September 28, 2010
पत्र संख्या-5
पटना, 20. 8. 01.
आदरणीय मामू प्रणाम।
पटना में आपसे दुबारा न मिल सका इस बात का अगली मुलाकात तक दुःख बना रहेगा। अशोक से मालूम हुआ कि दिल्ली में भी आप मेरी कविताओं को याद कर रहे थे। मेरे लिए यह संतोष से ज्यादा गर्व की बात है। उसके आगे भी मैंने कुछ कविताएं लिखी हैं-एक छोटी और एक अपेक्षाकृत बड़ी।
लोक दायरा आपको कैसी लगी इस बारे में अवश्य पत्र लिखेंगे। आपके पत्र को छापकर हमलोग सम्मानित महसूस करेंगे। कुछ अच्छी जगहों पर इसकी चर्चा हो तो बेहतर हालांकि मुझे खुब मालूम है कि इसके लिए अलग से आपको बताने या कहने की जरूरत नहीं। यह तो आपकी आदत में शामिल है।
हमलोग एक पृष्ठ समीक्षा के लिए देना चाह रहे हैं। हालांकि दूसरे अंक में कुछ ज्यादा गद्य शामिल कर लिया गया है।
समीक्षा के लिए सबसे उपयुक्त हमलोगों को आप ही लगे। आप सबसे ताजा पुस्तकों के संपर्क में रहते हैं और साथ ही किसी विषय पर एक स्पष्ट और वैज्ञानिक राय होती है। इसलिए बीच-बीच में कुछ भेजने की कृपा करेंगे। राधेश्याम मंगोलपुरी का पता भेज देंगे ताकि मैं उन्हें प्रति भेज सकूं। सही चीजें सही आदमी के पास होनी चाहिएं। नवल जी और अरुण कमल की राय ठीक है। अगला अंक भी शीघ्र ही आनेवाला है। आप जल्द ही उसे देख सकेंगे। मामी को मेरा प्रणाम कहेंगे। प्रतीक्षा में।
राजू रंजन प्रसाद
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अच्छा लगता है आपका संकलन पत्रों का पढ़्ना.
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