पत्र संख्या-2
पटना, 20. 8. 01।
प्रिय अमरेन्दु जी
नमस्ते।
यहां सब ठीक-ठाक चल रहा है। लोक दायरा का प्रवेशांक आपकी कविता के साथ जून में आ चुका है। मैंने कहा भी था कि आप कुछ कविताएं अगलें अंक के लिए भेज दें। लेकिन आपने ऐसा न किया। शायद निमंत्रण-पत्र का इंतजार रहा हो अपने प्रिय कवि अरुण कमल की तरह। बात यह है कि ‘युद्धरत आम आदमी’ पत्रिका का युवा विशेषांक आ रहा है जिसके लिए मैं और मुकुल जी उनसे साक्षात्कार लेने गये थे। बोले कि मुझे तो लिखित पत्र चाहिए। अलबत्ता, लोक दायरा की प्रति उन्होंने पैसे देकर खरीदी। नवल जी को प्रति मैंने सम्मान के बतौर दी। उन्होंने भी उधार न रखा-‘जनपद’ की एक-एक प्रति और अपने द्वारा एक संपादित पुस्तक भी दी। कुछ दिन पहले मैंने उन्हें एक पत्र लिखा था, जवाब बड़ा ही संतुलित दिया। लगता है मन निर्मल होता जा रहा है। घंटों बातचीत हुई। आपके बारे में पूछ रहे थे। उनकी इच्छा है कि आप उन्हें पत्र लिखें। ऐसा वे कह रहे थे। इधर मैंने कई नई कविताएं लिखी हैं। ‘युद्धरत आम आदमी’ में मेरी भी कविताएं होंगी। आप अपनी कुछ कविताएं भेज सकें तो कृपा होगी। लोक दायरा की प्रति बुक पोस्ट से भेज रहा हूं। मिलने पर सुझाव एवं शिकायत अवश्य लिखेंगे। दूसरा अंक शीघ्र ही आ रहा है। प्रतीक्षा में।
धन्यवाद
राजू रंजन प्रसाद
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