Monday, September 6, 2010

पत्र संख्या-30

संपादक महोदय,
लोक दायरा
राजकमल प्रकाशन से लोक दायरा घर में आई। पटना से पत्रिका प्रकाशित करना एक साहित्यिक जुनून ही है साथ ही मिशन भी। दोनों के लिए सर्वप्रथम शुभकामनाएं। आकार में छोटी, लोक दायरा की स्तरीय पाठ्य सामग्री से यह उम्मीद जगती है कि कल का दायरा शनैः शनैः बढ़ेगा ही। लोक दायरा के तेवर एवं मिशन के अनुरूप यह रचना भेज रही हूं जो आज के लिए प्रासंगिक है तथा समाज के सभी दायरे (सावधान कविता) में आई दरार की ओर लोक दायरा का ध्यान आकृष्ट करती है।

साथ ही डाक टिकट लगा लिफाफा भी संलग्न कर रही हूं ताकि स्वीकृति/अस्वीकृति की सूचना देने में आपको आसानी हो। सूचना अपेक्षित है ताकि मैं अपनी रचना सूचना के यथास्थिति के अनुकूल अन्यत्र भेजने न भेजने के बारे में निश्चित हो सकूं। कृपया प्रकाशन की स्थिति में अवधि का उल्लेख करें ताकि पत्रिका संकलित कर सकूं।
शुभकामनाओं के साथ

पाठिका

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