Tuesday, September 7, 2010

पत्र संख्या-31

अक्तूबर 25’07, दिल्ली

आदरणीय प्रसाद जी
सादर नमस्कार
‘आजकल’ के सितंबर ’07 अंक में प्रकाशित आपकी कविताएं वास्तव में समकालीन विसंगतियों का बड़ा ही मनोहारी चित्रण करती हैं: ‘जहां कोई भी असभ्य राहगीर/चलते-चलते मूत्र-त्याग की इच्छा रखेगा !’ ‘नया साल’ कविता भी मुझे बढ़िया लगी। आपका कवि बहुत समर्थ है और यह सामर्थ्य ‘नया साल’ के सुस्पष्ट बिम्ब-निर्माण में साफ-साफ झलकती भी हैः ‘झुर्रियों की लम्बाई व गहराई’।

आपकी चारों कविताओं ने ऐसा काव्य-फलक खड़ा कर दिया है कि पत्र लिखने से खुद को रोक नहीं सका। बधाइयां ! आशा है, हिंदी साहित्य को इसी प्रकार उत्कृष्ट रचनाओं से समृद्ध बनाते रहेंगे।
आपका
प्रांजल धर

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