Tuesday, September 7, 2010

पत्र संख्या-32

                                                                                            
दिल्ली, 22. 2. 05.
आदरणीय राजू भैया,

आपके लिए अभिवादन जैसी औपचारिकता से बचना चाह रहा था मैं दरअसल। लेकिन मेरा पारम्परिक मन इसे स्वीकार नहीं कर पा रहा है इसलिए मैं आपको एवं भाभी जी को प्रेमाभिवादन करता हूं। यह कार्ड मुकुल जी के पटना जाने से पहले से ही आपके नाम के साथ पड़ा है। हर दिन सोचता हूं कि आपको लिखूं लेकिन समझ में नहीं आता कि आखिर लिखूं तो क्या? अब क्या इस पीड़ा को व्यक्त करने से कि क्यों मणि जी जदयू से चुनाव लड़ गये, बहुत बुरा हुआ क्या कुछ मिलेगा। सच कहता हूं भैया इतनी गहरी पीड़ा पहुंची कि मैं आपको बता नहीं सकता। मणि जी से हमलोगों को बहुत सारी अपेक्षाएं थीं, जो व्यक्ति आर. एस. एस. का व्यक्तिगत बातचीत में इतना विरोधी हो, वह कैसे मौका पाते ही अपनी तमाम अर्जित सदगुणों को क्षणभर में ही ध्वस्त कर देता है। इधर मैं लगातार पुस्तक समीक्षाओं का इंतजार कर रहा हूं। पता नहीं आप कब तक उसे भेजेंगे। चन्द्रमोहन प्रधान का जो इण्टरव्यू आपने लोक दायरा में छापा था उसकी प्रति अगर उनकी तस्वीर के साथ मुझे मिले तो मैं उसे प्रभात खबर में छापूंगा। और हां 04 में लोकदायरा के जितने भी अंक प्रकाशित हुए हैं उसकी एक-एक प्रति मुझे अविलंब मुहैया करायें। मैं ‘आजकल’ के लिए 04 की पत्रिकाओं पर एक लंबा लेख लिख रहा हूं। मनीष भाई कैसे हैं ? यहां मुकुल जी अपने मोर्चे पर डटे हुए हैं। शेष सकुशल
आपका अभिन्न
अरुण
यू. एन. आई अपार्टमेंट, फ्लैट 27, सेक्टर 11 गाजियाबाद,
दिल्ली।

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