केलंग, 25. 06. 2003।
प्रियवर,
भारतेन्दु शिखर में आपकी कविताएं पढ़ीं। कविता संबंधी आपके विचार भी। जाहिर है प्रभावित होकर पत्र लिख रहा हूं। आप के विचार ‘‘युवा पीढ़ी की कविता के प्रति प्रतिबद्धता’’ को पुष्ट करते हैं। आज की कविता के औचित्य एवं महत्व की वकालत भी करते हैं।
मुझे अफसोस है कि हिन्दी क्षेत्र में कविता संबंध में कुछ अजीबो-गरीब धारणाएं बना ली गई हैं। अच्छे स्थापित साहित्यकार भी गलतफहमी का शिकार हैं। कविता महज ‘‘क्रान्ति का नारा’’ नहीं है उससे परे वह एक संवेदना है जो हममें मानवीयता का पोषण करती है। इस से बढ़कर कविता से कुछ और उम्मीद करना हमारी ज्यादती है। यही मेरी चिन्ता का विषय है।
वस्तुतः कुछ लोग सत्ता और राजनीति की चकाचौंध से प्रभावित होकर कविता के महत्व को नकार रहे हैं। ऐसे दिग्भ्रान्त साहित्यिकों को टोकना बहुत आवश्यक है। और हमारी पीढ़ी को ही यह उत्तरदायित्व निभाना है। आओ, हम गड़रिए बनें। उन भटके हुए पशुओं को सही मार्ग पर रखें। अपनी काठियां ज़रा और कठोर और भारी बनाएं। साहित्य या किसी भी कला को ‘‘सीढ़ी’’ बनने से बचाएं। कुछ कविताएं भेज रहा हूं। प्रतिक्रिया देंगे।
पुनश्च-छापना चाहें तो यथोचित संशोधन/संपादन कर के छाप सकते हैं। कविताएं अप्रकाशित हैं।
आपका
अजेय
प्रसार अधिकारी (उद्योग)
जिला उद्योग केन्द्र, केलंग
175132.
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