पटना, 24. 3. 2003.
संपादक महोदय,
अंक 5 में प्रकाशित अमरेन्द्र कुमार की कविता वाकई अच्छी है। आदमी के जद्दोजहद, पीड़ा और संवेदना को व्यक्त करती अमरेन्द्र की कविता अंदर तक छू जाती है। परंतु पढ़ने के बाद यह बोध भी हुआ कि आदमी से पीड़ा बड़ी है-क्या ऐसा उचित है ? कविता और कवि दोनों में इससे बाहर निकलने की छटपटाहट होनी चाहिए।
अशोक कुमार
राजेन्द्र नगर, पटना.
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