Tuesday, August 17, 2010

पत्र संख्या-10

आमगोला, मुजफ्फरपुर, 30.8. 2002।

प्रिय भाई राजू रंजन जी,

सादर नमस्कार।
 आपकी प्रेषित पत्रिका ‘‘दायरा’’-दो प्रतियां-मिलीं, धन्यवाद। पत्र में विलंब यों हुआ है कि अपनी शोध पुस्तक में बहुत व्यस्त रहा था। खैर।
पत्रिका बहुत छोटी, किंतु गागर में सागर जैसी समृद्ध है। कविता ने काफी जगहें ले ली हैं। डा. नामवर सिंह के प्रति मेरे उक्त पुराने कथन को आपने छापा है, सो अच्छा है, किंतु प्रूफ की बड़ी भूलें हैं, खासकर मेरी कहानियों के नामों में। कृपया आगामी अंक में यह ठीक कर देंगे-भूल सुधार। ‘कतार’ में कहानी ‘‘आदिम राग’’ है, ‘धर्मयुग’ की ‘‘रिश्ते’’ तो सही है, ‘आवर्त’ की कथा है ‘‘प्यास’’। कृपया ठीक कर छापेंगे नाम।

पत्रिका का कलेवर छोटा है, तथापि आप चाहेंगे तो कुछ अवश्य इसके योग्य भेजूँगा।
विशेष शुभ है। इधर आएँ तो मिलेंगे।
पुनश्चः ‘‘औपनिवेशिक’’ लेखन का तात्पर्य स्पष्ट नहीं समझा!
चन्द्रमोहन प्रधान

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