Thursday, August 19, 2010

पत्र संख्या-13

हैदराबाद, 24. 3. 03।
प्रिय भाई राजू जी,

नमस्कार। आपका कार्ड मिला। यहां सब ठीक है। आज बेबी ने थोड़ी दूर पर कोई स्कूल ज्वायन किया है। छः मिलेंगे जिसमें जाने-आने का भाड़ा दो ले लगेगा पर इस तरह वह व्यस्त रहेगी और कुछ सीखेगी भी जैसाकि पटना में हुआ था। अब तक यहां सब वही संभाल रही थी। बीच में एक जटिल दुर्घटना हुई थी। मैं तो सब देखता-चेतता रहता हूं-पर वह तभी सीखती है जब उसे खुद उसका अनुभव होता है। नही तो पहले यूं ही आंटी लोग के यहां घूमने-खाने में समय बर्बाद करती थी और पैसा भी। हंस में कविताएं भेजी हैं-मांग की गई थी और ‘लोक दायरा’ निकला या नहीं? बेबी अपनी मैडम (मेरी पत्नी) को हमेशा याद करती है। मैंने कहा वहीं जाओ, साथ पढ़ाना और बच्चों को देखना-मैं भी लौटने की व्यवस्था करूंगा। यूं ही....होम्यो की अंतिम परीक्षा दे दी है...। मनीष क्या लिख रहा है और आपका शोध पूरा हुआ या नहीं। अतीत खींचता है। बराबर...पर...

कुमार मुकुल

No comments:

Post a Comment