Friday, August 20, 2010

पत्र संख्या-14

हैदराबाद, 8.4.04

प्रिय भाई राजू जी,
नमस्कार।
लोक दायरा की प्रतियां मिलीं। अंक अच्छा बन पड़ा है। अमरेन्द्र की कविताएं लाजवाब हैं। समीक्षक की जगह अपना नाम देना चाहिए था। अमरेन्द्र का नाम बोल्ड होना चाहिए था। मनीष की कविता भी अच्छी लगी। विद्यानंद जी के अनुवाद देते रहेंगे। रामसुजान जी से कुछ अलग मुद्दों पर लगातार लिखवाएं। यहां सब करीब ठीक है। ‘हंस’ के मई अंक में मेरी नयी कविताएं आ जाएंगी। मणि जी क्या कर रहे हं ? अजय-श्रीकांत जी से भेंट होती है क्या ? विजय ठाकुर जी से ले इतिहास पर छोटी टिप्पणियां छापें। सियाराम जी की कोई खबर है या नहीं ? और पटना का साहित्यिक मिजाज कैसा है ? स्कूल की पत्रिका का कोई अंक निकला या नहीं ? साथ का कार्ड घर पहुंचवा देंगे। बेबी स्कूल जाने लगी है। मोती क्या कर रहे हैं ? गट्टू को पत्र लिखने क्यों नहीं कहते ? आगे के अंक के लिए यहां की पत्रकारिता पर एक टिप्पणी लिखूंगा। विनय कुमार की पत्रिका के लिए वेणु गोपाल पर रोचक टिप्पणी लिख दी है मैंने।
शेष पत्र दें।
-मुकुल

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