Sunday, August 15, 2010

पत्र संख्या-9

नयी दिल्ली, 5.5.98।
 
प्रिय राजू भाई,
मंगल-कामना!  
आपका कार्ड मिला। आपकी कुशल जानकर खुशी हुई। बीच-बीच में अशोक से आपका हालचाल मालूम होता रहता है। सीधे पत्र पाकर बहुत अच्छा लगा।
 
मेरी लिखी चीजों पर आपकी निगाह जाती है यह मेरे लिए आश्वस्तिदायक है। अगर जरूरी लगे तो कभी-कभार अपने नजरिए से मुझे परिचित करायेंगे ताकि अपनी चीजों को ‘सोधने’ में मदद मिल सके।
 
आपके लेख इधर और कहीं आए हों तो सूचित करेंगे। ‘विकल्प’ वाला लेख मैं पढ़ चुका हूँ। इसके अलावे ‘नालंदा’ पर लेख भी पसंद आया। सबसे बड़ी बात है कि एक अलग किस्म की भाषा एवं सोच से आपके यहाँ सामना है। पाठक बचकर निकल नहीं सकता। इस ताकत को और सार्थक ऊँचाई दें।
 
‘बाबा’ को लेकर दिल्ली में भी हल्की उत्तेजना है। कृपया आप तनिक विस्तार से उनके स्वास्थ्य एवं उनसे जुड़े मुद्दे के बारे में लिखें। क्या हमारे लिए कुछ हो सकता है ? उनके बेटों का रवैया क्या है ? उनकी आर्थिक स्थिति क्या है ? शेष ठीक है।
आपका
रामसुजान अमर

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