Monday, August 30, 2010

पत्र संख्या-24

भागलपुर, 6 जून 02।

प्रिय राजू जी,
आशीश।
आपका भेजा ‘‘दायरा 3’’ अंक मिला। थोड़ा पढ़ा हूं। मुख्य पृष्ठ पर आपका सम्पादकीय पढ़ा। जोशी जी को मुंहतोड  उत्तर दिया गया है। साम्प्रदायिकता का (की) खाल ओढ़ कर देशभक्ति का पाठ भारत की जनता को सिखाना चाहते हैं। दूसरा अंतिम पृष्ठ का ‘‘बुढ़ापा’’ भी पढ़ा। याद आयी अपनी जवानी और आज के हलात की मजबूरी। पार्टी के लिये जवानी में बहुत कुर्बानी थी-और निष्ठा से पार्टी से प्यार था-परन्तु सब बेकार सा लगता है। आपने पार्टी अनुभव की बात लिखने को कहा है-कुछ लिख भेजूंगा। ‘‘अफगानिस्तान’’ भी पढ़ा बड़ा रोचक लगा। औरों को पढ़ूंगा और अनुभव लिखेंगे। अपना प्रयास जारी रखें। नितान्त जरूरत है ऐसी चीजों की।
‘‘बाबूजी’’

No comments:

Post a Comment