आदरणीय बाबा,
आपकी बीमारी लंबी खींच रही है, दुख है। स्वास्थ्य लाभ की कामना है। मेरे बारे में जो कुछ आपने लिखा है, उसमें अतिरंजना है कि नहीं मैं नहीं कह सकता। आप ही पर छोड़ता हूं। बहरहाल, खिंचाई में कड़ुवापन का स्वाद तो नहीं मिला, अलबता आपके स्वभाव के प्रतिकूल उसमें खीझ के दर्शन अवश्य हुअे (हुए)। ओह! बाबा वे लोग सचमुच बड़े भाग्यशाली होंगे जो बिना श्रम किये ही रास्ता ढूंढ़ लेते हैं... आप उनके बारे में क्या सोचते होंगे जिसे राह ने बीच में ही भरमाया हो यों कहें कि चकमा देकर हतप्रभ कर दिया हो। कुछ के लिए ‘अधूरापन’ टाल देना आसान होता है, मैं चक्कर में पड़ जाता हूं। रूका रह जाता हूं। त्रिशंकु की तरह। आप में सयानापन है, काबिलियत भी इसलिए नुस्खों की भरमार है। आप कुछ लिख रहे हैं। बड़े मजे की खबर है। जारी रखिए आपसे मुलाकात होगी, कवि के मुख से सुनने का आनंद भी मिलेगा, इसका आश्वासन बार-बार मिलता रहेगा, यह उम्मीद बराबर रहेगी।
आपका
अमरेन्द्र
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