Friday, August 27, 2010

पत्र संख्या-20

हैदराबाद, 4.5.02।

प्रिय भाई राजू जी,
धीरे-धीरे यहां सब ठीक हो रहा है। आज काम किए सप्ताह भर हो गए। सोमवार को प्रेस कार्ड बन जाएगा। मतलब नौकरी पक्की हुई। पर यहां मन जरा भी नहीं लगता। दूसरे दिन ही लौटने को सोचा था। पैसा 5 के उपर (ऊपर) नहीं दे रहा था पर लगता है अब छः के उपर (ऊपर) देगा। मेरी मांग 8 है। ज्यादा दिन यहां नहीं रहा जा सकता। एक कमरा लिया है 600 में। आगे घर लूंगा तो बेबी को लाने की सोचूंगा। मेरे काम से सभी संतुष्ट हैं यहां। बिहार-यूपी के बहुत लड़के हैं। मेरी ड्यूटी 10 से शाम 7 तक है। संपादकीय पेज और फीचर मिला है देखने को। शुरू में अंग्रेजी अनुवाद पर बहस हो गयी थी संपादक से। खूब भाषण पिलाया था उसे फिर भी रख लिया। लगता है उसे मेरी जरूरत थी। बेबी-सोनू की खबर लेंगे। गट्टू कैसा है? आपलोगों की काफी याद आती है।
कुमार मुकुल

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