Friday, August 13, 2010

पत्र संख्या-6

लोहियानगर, कंकड़बाग, पटना: 7.7. 2003।
 
आदरणीय भैया
नमस्कार।
 
लोकदायरा-5 पढ़ गया हूं-बड़ा ही गंभीर और प्रतिबद्ध आयोजन। आपने कलेवर छोटा भले ही रखा है, पर आपका फलक बहुत बड़ा है। यह अत्यंत ही अजीब है कि इस भाषा में बड़े कलेवर में छोटे-छोटे काम करने की जहाँ परंपरा है, वहां आप इसके उलट अपने जीवट से नया और महत्वपूर्ण कर रहे हैं। जिस राज्य में पद, पुरस्कार, पैसा के लिए भोंका-भोंकी मची है, उसी राज्य से आप अपने सीमित साधन से बगैर बाजार और विज्ञापन की वैशाखी लिए, अपनी रोटी का हिस्सा खिलाकर साहित्य-संस्कृति पोसने का काम कर रहे हैं। यह मेरे जैसे लोगों के लिए प्रेरणास्पद बात है। आपके यज्ञ के निमित्त अपन का भी कुछ रक्त-स्वेद होम हो सका तो अपने को कृतार्थ समझूंगा।
शीघ्र ही रचनाएं भेजने की कोशिश करूंगा। अन्य सेवा भी बताएँ। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
अपना 
हरेप्रकाश उपाध्याय

No comments:

Post a Comment